पुलिस कमिश्नरेट में कानून व्यवस्था से लेकर अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए निरोधात्मक कार्रवाई के लिए बड़ी शक्तियां पुलिस को मिल गई हैं। गुंडा एक्ट और गैंगस्टर एक्ट पर अंतिम निर्णय पुलिस आयुक्त लेते हैं। मजिस्ट्रेटी अधिकार मिलने से शांति भंग की आशंका पर आरोपित को पुलिस जेल भेज सकती है। कमिश्नरेट में एसीपी या उनके स्तर से ऊपर के अधिकारियों के कार्यालय में कोर्ट भी हैं । यहां पुलिस अधिकारी अपने मजिस्ट्रेटी अधिकार का प्रयोग करते हैं । इसके साथ ही, धारा 144 लागू करने का अधिकार भी आयुक्त का होता है । अब तक जिलाधिकारी के आदेश पर धारा 144 लागू होती थी।
कमिश्नरेट प्रणाली में पुलिस को शांतिभंग की आशंका में चालान का अधिकार होता है । जबकि पूर्व की व्यवस्था में पुलिस आरोपित को गिरफ्तार करती थी और मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती थी। आरोपित को जेल भेजने और जमानत पर रिहा करना है, यह अधिकार मजिस्ट्रेट के पास होता था। इसी तरह, पाबंद भी पुलिस ही करती थी, लेकिन रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के यहां भेजी जाती थी और वहीं से पाबंदी का आदेश जारी होता था। गुंडा एक्ट और गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई में पुलिस रिपोर्ट बनाकर जिलाधिकारी के लिए भेजती थी। अब इस पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार भी पुलिस आयुक्त के पास होता है । गैंगस्टर एक्ट के तहत संपत्ति जब्तीकरण की कार्रवाई भी पुलिस आयुक्त के आदेश से की जा जाती है ।
सुरक्षा देने का अधिकार होता है
अब तक जनपदीय सुरक्षा समिति के अध्यक्ष जिलाधिकारी होते थे। इसलिए सुरक्षा देने पर अंतिम निर्णय उनका रहता था। पुलिस रिपोर्ट देती थी। अब इस समिति के अध्यक्ष पुलिस आयुक्त होते हैं । इसमें जिलाधिकारी द्वारा नामित अधिकारी और सीओ एलआइयू सदस्य होते हैं । सुरक्षा देने का अंतिम निर्णय पुलिस आयुक्त ही लेते हैं ।
पुलिस को मिली ये शक्तियां
- पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 : इस अधिनियम का मकसद पशुओं पर हो रही क्रूरता को रोकना है। इसके लिए भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना 1962 में की गई थी। धारा चार के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- विदेशी नागरिक अधिनियम 1946 : इस अधिनियम के अनुच्छेद तीन के तहत केंद्र सरकार द्वारा विदेशी नागरिक अधिनियम आदेश 1964 को जारी किया गया था। केवल असम में विदेशी नागरिक न्यायाधिकरण गठित हैं। अन्य किसी राज्य में नहीं है।
- विस्फोटक अधिनियम 1984 : इस अधिनियम की धारा 4-घ में विस्फोटक पदार्थों को रखने के दौरान नियमों का पालन जरूरी है। इसमें निरीक्षण का अधिकार प्रशासनिक अधिकारी का था।
- पुलिस (द्रोह-उद्दीपन) अधिनियम 1922 : पुलिस बल के सदस्यों में संशय या फिर द्रोह उत्पन्न करेगा या फिर इसका प्रयोग करेगा। उस पर कार्रवाई की जाएगी। इसमें छह माह तक कारावास या फिर जुर्माना लग सकता है।
- उप्र गिरोहबंद और समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1986 : इस अधिनियम का गठन 1986 में किया गया। इस अधिनियम का गठन समाज विरोधी क्रियाकलापों को रोकने और सामना करना के लिए किया गया था।
- उप्र अग्निशमन सेवा अधिनियम 1944 : इस एक्ट को 1952 में संशोधित किया गया। इससे प्रदेशभर में अग्निशमन सेवाओं का विस्तार हुआ। वर्ष 1944 में प्रदेश में आठ फायर स्टेशनों और 198 अग्निशमन कर्मियों के साथ काम शुरू हुआ।
- उप्र गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 : इसमें मानव तस्करी, मनी लांड्रिंग, बंधुआ मजदूरी और पशु तस्करी पर अंकुश लगाने, जाली नोट, नकली दवाओं का व्यापार, अवैध हथियारों का निर्माण व व्यापार, अवैध खनन जैसे अपराधों पर गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की जाती है।
- कारागार अधिनियम 1894 : अभी तक डीएम द्वारा किसी भी जेल पर छापा मारा जाता था लेकिन अब यह अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास होता है ।
- अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 : देह व्यापार को रोकने के लिए यह अधिनियम बना था। अभी तक इस मामले में कार्रवाई का अधिकार प्रशासनिक अधिकारी के पास था। बिना प्रशासनिक अधिकारी की मौजूदगी के पुलिस छापा नहीं मार सकती थी । मगर होटलों में देह व्यापार की शिकायत मिलती है तो पुलिस सीधा कार्रवाई करती है ।
- पुलिस अधिनियम 1861 : अभी तक जिला पुलिस का मुखिया डीएम ही होता था। अगर किसी पुलिस अफसर के स्थानीय तबादला करना होता था तो इसके लिए डीएम की अनुमति ली जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं होता है ।
- गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 : आतंकवाद और नक्सलवाद की समस्या के चलते इस अधिनियम को 1967 में बनाया गया था। यह अधिनियम आतंकवाद और नक्सलवाद को रोकने में कारगार रहा है।
- शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1932 : सरकारी गोपनीयता को बरकरार रखने के लिए इस अधिनियम को 1932 में बनाया गया था। इसके तहत कोई भी व्यक्ति संवेदनशील जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकता है। देश की अखंडता व एकता को बनाए रखने के लिए जिन बातों को गुप्त रखना जरूरी है, उन्हें गुप्त रखना चाहिए।
- विष अधिनियम 1919 : किसी भी तरह के विष को बिना अनुमति के नहीं बेचा जा सकता है। न ही इसका आयात किया जा सकता है।